1857 का विद्रोह: 1857 ई. के विद्रोह को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की संज्ञा भी दी जाती है. 29 मार्च, 1857 को चर्बी वाले कारतूस के मुद्दे पर 34वीं नेटिव इन्फैन्ट्री बैरकपुर छावनी में मंगल पाण्डे ने में विद्रोह आरम्भ किया. 10 मई, 1857 के दिन मेरठ की पैदल टुकड़ी के दिल्ली पहुंचे तो इस क्रान्ति की शुरूआत हुई. इस क्रान्ति के समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री पामर्स्टन था . विद्रोह के समकालीन पत्रकार डब्ल्यू एच रसैल (टाइम्स-लंदन) थे.
दिसंबर, 1856 में सरकार ने पुराने लोहे वाली बंदूक ब्राउन बैस (Brown Bess) के स्थान पर नवीन एनफील्ड राइफल (New Enfield मार्ट Rifle) के प्रयोग का निर्णय लिया इसका प्रशिक्षण डम-डम, अम्बाला और ब्रिी स्यालकोट में दिया जाना था. इस नई राइफल में कारतूस के ऊपरी भाग को मुंह से काटना पड़ता था. जनवरी, 1857 में बंगाल सेना में यह अफवाह फैल गई कि चर्बी वाले कारतूस में गाय और सुअर की चर्बी है.
सैनिक अधिकारियों ने इस अफवाह की जांच किए बिना तुरंत इसका खंडन कर दिया. किंतु सैनिकों को विश्वास हो गया कि चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग लक्ष के उनके धर्म को भ्रष्ट करने का एक निश्चित प्रयत्न है. यही भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के विद्रोह का तात्कालिक कारण बना. 29 मार्च, 1857 को ‘बैरकपुर‘ में सैनिकों ने चर्बी वाले कारतूसों का प्रयोग करने से इंकार कर दिया और एक सैनिक मंगल पांडेय ने अपने एजुडेंट पर आक्रमण कर उसकी हत्या कर दी. अंग्रेजों द्वारा 34वीं एन.आई. रेजीमेंट भंग कर दी गई और अपराधियों को दंड दिया गया.
Contents
1857 की क्रांति का प्रमुख कारण
इसका मुख्य कारण ब्रिटिश साम्राज्य की घिनौनी नीतियां थीं, जिनसे तंग आकर अंततः विद्रोह का ज्वालामुखी फट पड़ा. एंग्लो-इंडियन इतिहासकारों ने सैनिक असंतोषों तथा चर्बी वाले कारतूसों को ही 1857 के महान विद्रोह का सबसे मुख्य तथा महत्वपूर्ण कारण बताया है. परंतु आधुनिक भारतीय इतिहासकारों ने यह सिद्ध कर दिया है कि चर्बी वाले कारतूस ही इस विद्रोह का एकमात्र कारण अथवा सबसे प्रमुख कारण नहीं थे. चर्बी वाले कारतूस और सैनिकों का विद्रोह तो केवल एक चिंगारी थी, जिसने उन समस्त विस्फोटक पदार्थों में, जो राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक कारणों से एकत्रित हुए थे, आग लगा दी और जिसने दावानल का रूप धारण कर लिया.
क्रांति का प्रारंभ 10 मई को मेरठ से हुआ था. यहां की तीसरी कैवेलरी रेजीमेंट के सैनिकों ने चर्बीयुक्त कारतूसों को छूने से इंकार कर दिया था खुलेआम बगावत कर दी. अपने अधिकारियों पर गोली चलाई तथा अपने साथियों को मुक्त करवा कर वे लोग दिल्ली की ओर चल पड़े. जनरल हेविट (General Hewitt) के पास 2200 यूरोपीय सैनिक थे, परंतु उसने इस तूफान को रोकने का कोई प्रयास नहीं किया. विद्रोहियों ने 12 मई, 1857 को दिल्ली पर अधिकार कर लिया. इस प्रकार सैनिकों का दिल्ली के लाल किले पर पहुंचना पहली घटना थी. 1857 के स्वाधीनता संग्राम का प्रतीक कमल और रोटी था.
1857 ई. की महान् क्रान्ति के प्रमुख केन्द्र
बरेली:- बरेली में रुहेलखंड के भूतपूर्व शासक के उत्तराधिकारी खान बहादुर ने 1857 के विद्रोह की रहनुमाई की. मुगल सम्राट बहादुर शाह द्वितीय ने उन्हें वायसराय के पद पर नियुक्त किया था. रानी लक्ष्मीबाई (मूल नाम मणिकर्णिका) का जन्म 19 नवंबर, 1835 को गैलरी में हुआ था जो वर्तमान में वाराणसी में है.
लखनऊ:- लखनऊ (अवध) में विद्रोह का प्रारंभ जून, 1857 में हुआ. विद्रोह का नेतृत्व बेगम हजरत महल ने किया. उन्होंने अपने अल्पवयस्क बेटे बिरजिस कादिर को नवाब घोषित किया तथा प्रशासन की बागडोर अपने हाथ में ले ली. अंत में 21 मार्च, 1858 को कैम्पबेल ने गोरखा रेजीमेंट की सहायता से लखनऊ पर पुनः अधिकार कर लिया.
कानपुर:- कानपुर में 5 जून, 1857 को नाना साहब (नाना धोंदो पंत) को पेशवा मानकर स्वतंत्रता की घोषणा की गई. नाना साहब को सेनापति (कमांडर-इन चीफ) तात्या टोपे से बहुत सहायता मिली थी. अजीमुल्ला खां नाना साहब के सलाहकार थे. इन्होंने नाना साहब के सचिव के रूप में भी कार्य किया था.
जगदीशपुर:- 1857 में जगदीशपुर में विद्रोह की अगुवाई करने वाले कुंवर सिंह बिहार के तत्कालीन शाहाबाद जिले (वर्तमान भोजपुर जिले) के जगदीशपुर से संबंधित थे.
असम:- असम में 1857 की क्रांति के समय वहां के दीवान मनिराम दत्त ने के अंतिम राजा के पौत्र को ईश्वर सिंह को राजा घोषित करके विद्रोह की शुरुआत की, परंतु शीघ्र ही विद्रोह का दमन करके मनिराम को फांसी दे हो गई.
फैजाबाद:- मौलवी अहमदुल्लाह शाह ने फैजाबाद में 1857 के विद्रोह को अपना नेतृत्व प्रदान किया. ये अंग्रेजों के सबसे कट्टर दुश्मन थे. वह मूलतः तमिलनाडु में अर्काट के रहने वाले थे, पर वह फैजाबाद में आकर बस गए थे.
1857 की क्रांति के असफलता के कारण
स्वतंत्रता संघर्ष में ग्वालियर के सिंधिया ने अंग्रेजों की सर्वाधिक सहायता की. यूरोपीय इतिहासकारों ने ग्वालियर के मंत्री सर दिनकर राव और हैदराबाद के मंत्री सालारजंग की राजभक्ति की बहुत सराहना की है.संकट के समय कैनिंग ने कहा था, “यदि सिंधिया भी विद्रोह में सम्मिलित हो जाए तो मुझे कल ही बिस्तर गोल करना होगा.‘ 1857 का विद्रोह बहुत बड़े क्षेत्र में फैला हुआ था और इसे जनता का व्यापक समर्थन प्राप्त था. फिर भी पूरे देश को या भारतीय समाज के सभी अंगों तथा वर्गों को यह अपनी चपेट में नहीं ले सका.
यह दक्षिण भारत तथा पूर्वी और पश्चिमी भारत के अधिकांश भागों में नहीं फैल सका. ग्वालियर के सिंधिया, इंदौर के होल्कर, हैदराबाद के निजाम, जोधपुर के राजा, भोपाल के नवाब, पटियाला, नाभा और जींद के सिख शासक एवं पंजाब के दूसरे सिख सरदार, कश्मीर के महाराजा तथा दूसरे अनेक सरदारों और बड़े जमींदारों ने विद्रोह को कुचलने में अंग्रेजों की सक्रिय सहायता की. गवर्नर जनरल कैनिंग ने बाद में टिप्पणी की कि इन शासकों तथा सरदारों ने “तूफान के आगे बांध (तरंग रोधक) की तरह काम किया, वर्ना यह तूफान एक ही लहर में हमें बहा ले जाता.” 1857 के विद्रोह में शिक्षित वर्ग ने कोई रुचि नहीं ली, जो इस महासमर की असफलता के प्रमुख कारणों में से एक है.
1857 के विद्रोह के प्रभाव
विद्रोह के समय भारत का गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग (1856-62) था. विद्रोह के समय लॉर्ड कैनिंग ने इलाहाबाद को आपातकालीन मुख्यालय बनाया था. लॉर्ड कैनिंग भारत में कंपनी द्वारा नियुक्त अंतिम गवर्नर जनरल तथा ब्रिटिश सम्राट के अधीन नियुक्त भारत का पहला वायसराय था. न्यायिक सुधारों के अंतर्गत कैनिंग ने ‘इंडियन हाईकोर्ट एक्ट द्वारा बंबई, कलकत्ता तथा मद्रास में एक-एक उच्च न्यायालय की स्थापना की. सामाजिक सुधारों के अंतर्गत विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 में कैनिंग के समय में ही पारित हुआ था. 1857 के सिपाही विद्रोह (Sepoy mutiny) को भारत में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के नाम से तथा ब्रिटेन में इंडियन म्यूटिनी (Indian mutiny) के नाम से अभिहित किया जाता है.
विद्रोह के समय बैरकपुर में लेफ्टिनेंट जनरल सर जॉन बेनेट हैरसे (John Bennett Hearsey) कमांडिंग ऑफिसर थे. जिस समय भारत में 1857 की क्रांति हुई, विस्कॉन्ट पामर्स्टन ब्रिटेन के प्रधानमंत्री थे. इनका कार्यकाल 1855-1858 ई. तथा 1859-1865 ई. तक था. 1857 के विद्रोह की असफलता का मुख्य कारण किसी सामान्य योजना एवं केंद्रीय संगठन की कमी था. विद्रोहियों के नेताओं में कोई संगठन की भावना देखने में नहीं आई. उनके पास किसी सुनियोजित कार्यक्रम का पूर्ण अभाव था. उन्हें अनुशासन की कमी भी थी. कभी-कभी तो वे अनुशासित सेना के बजाए दंगाई भीड़ की तरह व्यवहार करते थे. उनके पास एक भविष्योन्मुख कार्यक्रम, संगीत विचारधारा, राजनीतिक परिप्रेक्ष्य या भावी समाज और अर्थव्यवस्था के प्रति एक स्पष्ट दृष्टिकोण का अभाव था.
14 सितंबर, 1857 को अंग्रेजों द्वारा दिल्ली पर अधिकार करने के क्रम में जनरल जॉन निकलसन घायल हुआ और 23 सितंबर, 1857 को उसकी मृत्यु हुई थी. लखनऊ में 1857 के विद्रोह के दौरान अंग्रेज रेजीडेंसी की रक्षा करते हुए सर हेनरी लॉरेंस, मेजर जनरल हैवलॉक तथा जनरल नील की मृत्यु हुई. सर जेम्स आउट्रम एवं डब्ल्यू. टेलर ने 1857 के विद्रोह को हिंदू-मुस्लिम षड्यंत्र का परिणाम बताया है.
1857 के विद्रोह पर प्रमुख पुस्तक
आउट्रम का विचार था कि “यह मुस्लिम षड्यंत्र था जिसमें हिंदू शिकायतों का लाभ उठाया गया.” जॉन लॉरेंस और सीले के अनुसार यह केवल ‘सैनिक विद्रोह’ था. टी.आर. होम्स के अनुसार, यह बर्बरता और सम्यता के बीच युद्ध था. वी.डी. सावरकर ने अपनी पुस्तक “The Indian war of Independence 1857” में इस विद्रोह को सुनियोजित स्वतंत्रता संग्राम की संज्ञा दी. उन्होंने इसे स्वतंत्रता की पहली लड़ाई कहा था. 1857 के भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के सरकारी इतिहासकार सुरेंद्र नाथ सेन (एस.एन. सेन) थे जिनकी पुस्तक ‘एट्टीन फिफ्टी सेवन‘ 1957 में प्रकाशित हुई थी.
सर सैयद अहमद खां द्वारा लिखित पुस्तक ‘असबाब-ए-बगावत ए-हिंद‘ 1859 ई. में प्रकाशित हुई थी, जिसमें 1857 के विद्रोह के कारणों की चर्चा की गई थी. भारत सरकार द्वारा आर.सी. मजूमदार को 1857 के विद्रोह का इतिहास लिखने के लिए नियुक्त किया गया था. परंतु सरकारी समिति से अनबन होने के कारण उन्होंने यह कार्य करने से इंकार कर दिया तथा अपनी पुस्तक “The Sepoy Mutiny and the Rebellion of 1857” को स्वतंत्र रूप से वर्ष 1957 में प्रकाशित किया. मजूमदार ने ही 1857 के विद्रोह को “तथाकथित प्रथम राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम न प्रथम, न राष्ट्रीय और न ही स्वतंत्रता संग्राम था” कहा था.
1857 के विद्रोह के परिणाम
विद्रोह का सबसे महत्वपूर्ण परिणाम महारानी विक्टोरिया की उद्घोषणा थी. ये उद्घोषणा 1 नवंबर, 1858 को इलाहाबाद में हुए दरबार में लॉर्ड कैनिंग द्वारा उद्घोषित की गई. इसमें भारत में कंपनी के शासन को समाप्त कर भारत का शासन सीधे क्राउन के अधीन कर दिया गया. इस उद्घोषणा में भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार पर रोक लोगों के धार्मिक मामलों में हस्तक्षप न करना, एकसमान कानूनी सुरक्षा सबको उपलब्ध कराना आदि शामिल था भारतीय रजवाड़ों के प्रति विजय और विलय की नीति का परित्याग कर दिया गया और सरकार ने राजाओं को गोद लेने की अनुमति प्रदान का तथापि अन्य आश्वासन ब्रिटिश शासन द्वारा पूरे नहीं किए जा सका
1857 के विद्रोह के दमन के बाद ब्रिटिश सरकार ने भारतीय फौज के ‘नव गठन‘ के लिए जुलाई, 1858 में मेजर जनरल जोनाथन पील की अध्यक्षता में एक रॉयल कमीशन (पील आयोग) का गठन किया, जिसने सेना के रेजीमेंटों को जाति, समुदाय और धर्म के आधार पर विभाजित किया.
यूरोपीय सैनिकों की संख्या जो 1857 से पूर्व 45,000 थी अब 65,000 कर दी गई तथा भारतीय सैनिकों की संख्या 2,38,000 से घटाकर 1,40,000 कर दी गई. बंगाल में यूरोपीय सैनिकों का भारतीय सैनिकों से 1 : 2 का अनुपात रखा गया, जबकि मद्रास तथा बंबई में यह अनुपात 1: 3 का रखा गया. 1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार ने सिपाहियों का चयन गोरखा, सिख एवं पंजाब के उत्तर प्रांत से किया.
Leave a Reply