Methods used in the treatment of Covid-19 – दोस्तों आज SakriPot आप सभी छात्रों के बीच कोरोना वायरस से सम्बंधित “Methods used in the treatment of Covid-19 – कोविड-19 के उपचार में इस्तेमाल होने वाले तरीके” के बारे में जानकारी शेयर है. प्रतियोगी परीक्षाओं में Methods used in the treatment of Covid-19 Topics in Hindi पर प्रश्न पूछा जायेगा. इसीलिए सभी छात्र जो SSC, UPSC, IAS, Railway, Bank आदि Compititive Exams की तैयारी कर रहे है, तो वे इस लेख पढ़ें.
रैपिड टेस्ट
Rapid Test जब आप किसी वायरस या और किसी पैथोजन से संक्रमित होते हैं, तो शरीर उससे लड़ने के लिए एंटीबॉडीज बनाता है. एंटीबॉडी टेस्ट के जरिए इन्हीं एंटीबॉडी का पता लगाया जाता है. खून में मौजूद एंटीबॉडी से ही पता चलता है कि किसी शख्स में कोरोना या किसी अन्य वायरस का संक्रमण है या नहीं.
कैसी होती है इसकी जांच?
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के मुताबिक खांसी, जुकाम आदि के लक्षण दिखने पर पहले 14 दिनों के लिए क्वारंटाइन किया जाता है और उसके बाद उस व्यक्ति के खून के नमूने लेकर एंटीबॉडी टेस्ट या सीरोलॉजिकल टेस्ट किए जाते हैं. जिसका परिणाम भी आधे घंटे के अंदर आ जाता है.
जांच में क्या पता करते हैं ?
इसमें देखते हैं कि संदिग्ध मरीज के खून में कोरोना वायरस से लड़ने के लिए एंटीबॉडी काम कर रही है या नहीं. वायरस से होने वाले संक्रमण पूरी तरह से खत्म हो जाने के बाद भी ये एंटीबॉडी शरीर में कुछ समय तक मौजूद रहते हैं. इससे डॉक्टरों को यह पहचानने में मदद मिलती है कि मरीज पहले संक्रमित था या नहीं.
पॉजिटिव मिलने पर क्या होगा?
अगर कोई व्यक्ति एंटीबॉडी टेस्ट में पॉजिटिव आता है तो डॉक्टरी परीक्षण के बाद उसका इलाज अस्पताल में होगा या फिर प्रोटोकॉल के तहत उसे आइसोलेशन में रखा जाएगा. इसके बाद सरकार उसके संपर्क में आए लोगों की तलाश करेगी. अगर टेस्ट नेगेटिव आता है तो व्यक्ति को होम-क्वारंटीन किया जाएगा या फिर पीसीआर टेस्ट किया जाएगा.
प्लाज्मा थेरपी (Plasma Therapy)
वर्तमान में दुनिया भर में कोरोना वायरस के केस से होने वाली मौतों का सिलसिला थम नहीं रहा है. दुनियाभर के वैज्ञानिक इसकी काट ढूँढने में लगे हुए हैं. परन्तु जब तक वो टीके की खोज नहीं कर लेते तब तक ऐसी दवाओं को इस्तेमाल में लाया जा रहा है जो अमुक मरीज को जिन्दा रख सके ताकि उसका प्रतिरक्षा तंत्र खुद कोरोना वायरस को खत्म कर सके. गौरतलब है कि हाल ही में दिल्ली के कोविड-19 के 4 रोगियों पर किए प्लाज्मा थेरेपी के शुरुआती रिजल्ट उम्मीद जगाने वाले हैं.
प्लाज्मा होता क्या है?
Plasma खून में मौजूद पीले रंग का तरल पदार्थ होता है. रेड ब्लड सेल, वाइट बुड सेल और प्लेटलेट आदि को अलग करने के बाद प्लाज्मा बचता है.
प्लाज्मा की खासियत
Plasma (प्लाज्मा) वायरस के खिलाफ एंटीबॉडी बनाता है जो हाथरस से लड़कर उसको खत्म कर देती है. प्लाज्मा थेरपी की जरूरत क्यों होती है दरअसल कोरोना के संक्रमण के बाद मरीज के शरीर में प्लाज्मा के जरिए एंटीबॉडी बनने की ताकत सीमित या खत्म हो जाती है. इसलिए इस थेरपी की जरूरत पड़ती है.
कोरोना मरीजों में प्लाज्मा थेरपी
Plasma Therapy तकनीक के तहत कोविड- 19 से ठीक हो चुके मरीजों के खून से एंटीबॉडीज लेकर उनका इस्तेमाल गंभीर रूप से संक्रमित मरीजों के इलाज में किया जाता है. किसी मरीज के ठीक होने के बाद भी एंटीबॉडी प्लाज्मा के साथ शरीर में रहती हैं, फिर बीमार के शरीर में यह स्वस्थ प्लाज्मा फिर ये नए एंटीबॉडी पैदा करने लग जाता है, जिससे माना जा रहा है कि कोरोना हार जाता है. तमिलनाडु, महाराष्ट्र, दिल्ली, पंजाब, गुजरात में इस पर काम चल रहा है, जबकि कई दूसरे राज्य भी आईसीएमआर से इजाजत की इंतजार में हैं.
प्लाज्मा थेरपी पहली बार कब हुई थी?
यह कोई नया इलाज नहीं है. यह 130 साल पहले यानी 1890 में जर्मनी के फिजियोलॉजिस्ट एमिल वॉन बेहिंग ने खोजा था. इसके लिए उन्हें नोबेल सम्मान भी मिला था. यह मेडिसिन के क्षेत्र में पहला नोबेल था.
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