मंगल पांडेय 194वीं जयंती आज: जाने जिन्होंने बैरकपुर से 1857 क्रांति की शरुआत की थी

Mangal Pandey Jayanti in Hindi – मंगल पांडेय का जन्म 19 जुलाई 1827 उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में हुआ था. मंगल पांडे सामान्य से विशेष नौ फीट ढाई इंच लम्बा, शरीर से  हृष्ट-पुष्ट युवक थे. वे  कुश्ती लड़ने के बहुत शौक रखते थे.जब मंगल पांडे की बहन की शादी बस्ती (लखनऊ के पास) में हुई तो वह भी अपने बहन के साथ बस्ती चले आये. वहाँ भी वह कुश्ती में ही अपना समय व्यतीत करते थे. इस कुश्ती के कारण वहाँ के पूरे इलाके में उनका नाम हो गया था. वह आस-पास के क्षेत्रों में भी कुश्ती लड़ने जाया करते थे.

एक बार पास के गाँव के एक अखाड़े में कुश्ती के लिए गए थे, जो लखनऊ बनारस मार्ग पर था. वहाँ से कम्पनी (अंग्रेजों) की सेना जनरल मेहुसन के साथ जा रही थी. उसने इस विशेष शरीरवाले नवयुवक को देखा तो कौतूहल हुआ. उसने मंगल पांडे से आग्रह किया कि वह सेना में भर्ती हो जाये. जिससे भविष्य भी बनेगा, वेतन भी मिलेगा, समय भी बेकार नहीं जायेगा. यह बात मंगल पांडे के दिमाग में आ गयी. वह अपने तीन अन्य साथियों के साथ सेना में भर्ती हो गए. फिर उनके माता-पिता ने उनकी शादी कर दी. जिससे उन्हें एक पुत्र भी हुआ. प्रारम्भ में मंगल पांडे कुश्ती के बाद अधिकांश समय पूजा-पाठ में लगाया करता था जिसका कारण धार्मिक वृत्ति का परिवार-संस्कार था.

बैरकपुर इतिहास

कलकत्ते से आठ मील दूर दम-दम में उन दिनों एक कारतूसों के बनाने का कारखाना खोला गया. वहाँ पर एक घटना घटित हो गयी. जिसके परिणाम से पूरे देश की छावनियों में हलचल पैदा हो गयी थी. एक नीच जाति के व्यक्ति ने एक ब्राह्मण सिपाही से पानी पीने के लिए माँगा. उसने पिलाने से इनकार कर दिया. इस पर व्यक्ति ने सिपाही से कहा, अच्छा तो तुम ऐसे ही शुद्ध ब्राह्मण बने रहना.

हमारे कारखाने में ऐसे कारतूस बन रहे हैं जिनके कागजों में गाय और सूअर की चर्बी लगी हुई है. सब सिपाहियों को इनका उपयोग करना होगा. यह सुनते ही ब्राह्मण सिपाही बौखला गया. उत्तेजित होकर छावनी पहुँचा. उसने अपने सभी साथियों से यह समाचार कहा. जिसकी खबर पूरी छावनी के साथ-साथ अन्य छावनियों में भी हवा की तरह फैल गयी. सिपाहियों में भय और आतंक छा गया था. उन्होंने समझा कि हमारी जाति और धर्म संकट में है. हिन्दू और मुसलमान दोनों ही समान रूप से भयभीत थे. यह समाचार बिजली की तरह सभी छावनी एवं पूरे देश में आम जनता तक पहुँच गयी. इसके कारण सेना में अंग्रेजों के विरुद्ध रोष की लहर फैल गयी. बंगाल में अंग्रेजों के बँगलों व सरकारी कार्यालयों में आग लगाना प्रारम्भ हुआ.

बैरकपुर छावनी का तार घर जला दिया गया. सेना के अफसरों की फूस की छत्ती पर जलते हुए बाग बरसने लगे. 27 फरवरी 1857 की बरहमपुर की 19 नम्बर की पलटन ने नये कारतूस लेने से इनकार कर दिया. जिस पर अंग्रेजों से सख्ती अपनायी. जिससे सिपाहियों को और विश्वास हो गया कि ये हमारे धर्म लेने पर उतारू हैं. हमें वह अंग्रेज ईसाई बनाना चाहते हैं. बैरकपुर की 24 नम्बर सेना थी. जिसमें पाँचवीं कम्पनी का 1446 नम्बर का सिपाही मंगल पांडे को यह अंग्रेजों का षड‍्यन्त्र पसन्द न था. वह अपने भाइयों का अपने सामने और अपमान सहन न कर सकता.

29 मार्च 1857 को फूंका स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल

प्रतिकार स्वरूप 29 मार्च 1857 को वह बैरक के बाहर एक हाथ में तलवार दूसरे में बन्दूक लेकर बाहर आ गए और अन्य सिपाहियों से आह्वान किया

न हम हलवाहे के बैल हैं, जो हमें चाहे जिस तरह जोत ले और न हम काबुक कबूतर हैं, जो हमें जैसा चाहे सब्जी बनाकर निगल जाये. हम स्वाभिमानी भारतीय वीर हैं. अंग्रेज हमारे स्वाधीनता को छीनकर अब हमारे धर्म को नष्ट करने पर तुले हैं. हम कदापि सहन नहीं कर सकते. आओ भारतीय वीरों, इस स्वतन्त्रता के युद्ध में अपनी आहुति देकर भारत माँ की पराधीनता की शाखों को काट दो.

इसके बाद उसने बिगुल बजाकर सबको एकत्र होने को कहा. लेकिन कोई एकत्र नहीं हुआ. मंगल पांडे हताश न होकर अकेला ही आगे बढ़ चले.

मंगल पांडेय का ब्रिटिश अफसरों पर हमला

मेजर जनरल हयुसन को इसका पता लगते ही वह वहाँ आया. उसने वहाँ उपस्थित सिपाहियों को आज्ञा दी कि वे मंगल पांडे को गोली मारे लेकिन उससे पहले ही अपनी बन्दूक से हयुसन को पहला शिकार बनाया. गोली की आवाज सुनते ही लेफ्टीनेंट बाए तथा सार्जेन्ट हडसन घटना स्थल पर आये. उन्हें भी तोप की आड़ में मंगल पांडे ने गोली मारी. यह गोली सही नहीं लग पायी. बाए का घोड़ा घायल हो गया. बाए नीचे गिर गया. वह तुरन्त उठ खड़ा हुआ.

उसने अपनी पिस्तौल से मंगल पांडे पर गोली चलायी. वार खाली गया. मंगल पांडे ने तलवार खींच ली और बाए पर आक्रमण किया. उसने भी तलवार खींच ली. तलवारों का द्वन्द युद्ध आरम्भ हुआ. एक ओर बाए तथा हडसन थे दूसरी ओर अकेला मंगल पांडे, वैसे मंगल पांडे की तलवार के आगे दोनों का टिकना कठिन था किन्तु पलटू नाम के सिपाही ने आगे बढ़कर पांडे का हाथ पकड़ लिया. दोनों अंग्रेज अफसरों को मौका मिल गया और वे भाग खड़े हुए. वहाँ उपस्थित सिपाहियों ने शेख पलटू को बहुत धिक्कारा.

इसी समय कर्नल हवालर ने आकर पांडे को गिरफ्तार करने का आदेश दिया. उस समय एक जमादार ईश्वर पांडे सहित 20 सैनिक उपस्थित थे. पर किसी ने आदेश का पालन नहीं किया. उन्हें एक आवाज आयी. “मंगल पांडे को हाथ लगाने का कोई दुस्साहस न करे”. हम इस पवित्र ब्राह्मण का बाल भी बाँका नहीं होने देंगे. कर्नल तब घबराकर भाग गया. उतने में जनरल हियरसे वहाँ आया. जब तक मंगल पांडे निराश हो चुका था.

सभी जल्लादों ने फांसी देने से किया इनकार

साथियों से मदद की आशा न थी. उसने अपनी बन्दूक से आत्महत्या करने का प्रयत्न किया. गोली उसकी छाती में लगी, वह घायल होकर बेहोश हो गया. अंग्रेजों ने उसे गिरफ्तार कर लिया. उनका कोर्ट मार्शल हुआ. मंगल पांडे ने अन्त तक अपने साथियों के विरुद्ध एक शब्द भी न कहा. 4 अप्रैल 1857 को अपने बयान में मंगल पांडेय  कहा,

मुझे न कोई सफाई देनी है न कुछ कहना है. पिछले रविवार को जो कुछ मैंने किया वह मैंने अपनी इच्छा से किया. किसी की बातों में आकर नहीं. मैंने मरने की उम्मीद की थी. जो भी मेरे सामने आता उसे मैं गोली से उड़ा देता.

8 अप्रैल 1857 को मंगल पांडेय को  फाँसी दे दी गयी. बैरकपुर में एक भी व्यक्ति ऐसा न मिला जो इस महान देशभक्त को फाँसी पर चढ़ाने को तैयार हो सके. अन्त में कलकत्ते से इस काम के लिए 4 आदमी बुलाये गये.

किन्तु मंगल पांडे ने अपने हाथों में फाँसी का फन्दा चूमकर गले में डाला. इसके बाद ईश्वरी पांडे को मंगल पांडे को गिरफ्तार न करने के आरोप में 21 फरवरी, 1858 को फाँसी दे दी गयी. क्रान्ति पथ में मंगल पांडे का प्रथम बलिदान था. जिसकी कथा देश की सभी छावनियों में तीव्र गति से फैल गयी. सिपाही उसे धर्मवीर मानने लगे. 24 नवम्बर को सेना को भंग कर दिया गया.

उनके सिपाहियों से वर्दी छीन ली गयी. 500 सिपाही मंगल पांडे के वीर गान गाते हुए आपस में अपने-अपने घरों को वापस लौट गये. मंगल पांडे के शहीद के परिणाम स्वरूप मेरठ की छावनी में 24 अप्रैल 1857 में विद्रोह हुआ. सेना ने कारतूस लेने से इनकार कर दिया. उन्हें जेल भेज दिया गया. बाद में जेल तोड़ कैदियों को छुड़ा क्रान्तिकारी लोग मेरठ से दिल्ली की ओर कूच कर गये.