Indian Rupee History in Hindi |भारतीय रुपये का इतिहास

भारतीय रुपये का इतिहास | History of Indian Rupee in Hindiभारतीय मुद्रा (Indian Rupee) के लिए एक आधिकारिक प्रतीक-चिह्न जुलाई, 2010 में चुना गया था जिसे आईआईटी, गुवाहाटी के असिस्टेंट प्रोफेसर डी. उदय कुमार ने डिज़ाइन किया था। अमेरिकी डॉलर, ब्रिटिश पाउंड, जापानी येन और यूरोपीय संघ के यूरो के बाद रुपया पाँचवीं ऐसी मुद्रा है, जिसे उसके प्रतीक-चिन्ह से पहचाना जाता है। रुपया शब्द का उद्गम संस्कृत के शब्द रूप या रुपया में निहित है, जिसका अर्थ चाँदी होता है और रूप्यकम् का अर्थ चाँदी का सिक्का है।

रुपया शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम शेरशाह सूरी ने भारत में अपने शासनकाल 1540-1545 के दौरान किया था। शेरशाह सूरी ने अपने शासनकाल में जो रुपया चलाया वह एक चाँदी का सिक्का था जिसका भार 178 ग्रेन (11.7387 ग्राम) के लगभग था। शेरशाह के शासनकाल में उपयोग किया जाने वाला रुपया अंग्रेजों के शासनकाल में भी प्रचलन में रहा।

भारतीय रुपया (प्रतीक-चिन्ह ; कोड : INR) भारत की राष्ट्रीय मुद्रा है। इसका बाज़ार नियामक और जारीकर्ता भारतीय रिजर्व बैंक है।

पहले 1 रुपया (11.66 ग्राम) 16 आने (या 64 पैसे या 192 पाई) में बांटा जाता था। यानी 1 आना 4 पैसों या 12 पाई में विभाजित था। 1957 में रुपए का दशमलवीकरण हुआ। इस प्रकार भारतीय रुपया (Indian Rupee) 100 पैसे में विभाजित हो गया। भारत में पैसे को पहले नया पैसा नाम से जाना जाता था।

History of Indian Rupee (भारतीय रुपये का इतिहास)

  • वर्ष 2011 में नोटो पर रुपए के नए चिह्न का प्रयोग प्रारंभ हुआ।
  • भारतीय नोट पर उसकी कीमत 15 भाषाओं में लिखी जाती है।
  • रुपया भारत के अलावा इंडोनेशिया, मॉरीशस, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका की भी आधिकारिक मुद्रा है।
  • रिजर्व बैंक कितने नोट छाप सकता है इसका निर्धारण मुद्रा स्फीति, जीडीपी ग्रोथ, बैंक नोट्स के रिप्लेसमेंट और रिजर्व बैंक के स्टॉक के आधार पर किया जाता है। यह भी संतुलन बनाना होता है कि नोट अधिक ना छप जाए क्योंकि इससे महंगाई के बढ़ने का खतरा रहता है।
  • सभी नोट जारी करने का अधिकार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पास है। लेकिन, एक रुपए का नोट वित्त मंत्रालय जारी करता है। इस नोट पर RBI के गवर्नर की जगह वित्त सचिव के हस्ताक्षर होते हैं
  • आजादी के समय भारतीय रुपया (Indian Rupee) ब्रिटिश पाउंड से संबद्ध था और यह अमेरिकी डॉलर के मूल्य के बराबर था। भारत की बैलेंस शीट में कोई भी विदेशी कर्ज नहीं था।
  • विकास और कल्याण की योजनाओं को धन मुहैया कराने के लिए, खास कर 1951 से पंचवर्षीय योजनाओं को लागू करने के लिए, सरकार को विदेशों से कर्ज लेना पड़ा। यहीं से रुपए का अवमूल्यन शुरू हो गया।

Demonetization of Notes (नोटों का विमुद्रीकरण) | History of demonetisation in india

जब किसी देश की सरकार किसी पुरानी मुद्रा को कानूनी तौर पर बंद कर देती है, तो इसे विमुद्रीकरण (Demonetization-डीमोनेटाइजेशन) कहते हैं। विमुद्रीकरण के बाद उस मुद्रा की कुछ कीमत नहीं रह जाती। उसे किसी तरह की खरीद-फरोख्त नहीं की जा सकती। सरकार द्वारा बंद किए गए नोटों को बैंकों में बदलकर उनकी जगह नए नोट लेने के लिए समयसीमा तय कर देती है। उस दौरान जिसने अपने नोट बैंकों में जाकर नहीं बदले या जमा नहीं किए उनके नोट कागज का टुकड़ा बनकर रह जाते हैं।

Why is Demonetization done? | विमुद्रीकरण क्यों किया जाता है?

सरकार ऐसा कई कारणों से कर सकती है। सरकार पुराने नोटों की जगह नए नोट लाने पर पुराने नोटों का विमुद्रीकरण कर देती है। मुद्रा की जमाखोरी (कालाधन) को खत्म करने के लिए भी बड़े राशि के नोटों का विमुद्रीकरण किया जाता है। आतंकवाद, अपराध और तस्करी जैसे आपराधिक कार्यों में भी बड़े पैमाने पर नगद लेन-देन होता है। इन कामों में लिप्त लोग कई बार नगद राशि अपने पास जमा रखते हैं। बाजार में कई बार नकली नोट भी प्रचलन में आ जाते हैं। सरकार नकली नोटों से छुटकारा पाने के लिए पुराने नोट बदल देती है। जालसाजी से बचने के लिए नई तकनीकी से तैयार किए गए ज्यादा सुरक्षित नोट लाने पर भी सरकार पुराने नोटों का विमुद्रीकरण कर देती है। टैक्स चोरी के लिए किए जाने वाले नगद लेन-देन को हतोत्साहित करने के लिए भी सरकार में कई बार विमुद्रीकरण का रास्ता अपनाती हैं।

Indian Rupee
Indian Rupee

सर्वप्रथम मुद्रा का विमुद्रीकरण जनवरी 1946 में किया गया जब 1000 और 10,000 रुपए के नोटों को वापस ले लिया गया। 1000, 5000 और 10,000 रुपए के नए नोट 1954 में पुनः शुरू किए गए।

1970 के दशक में प्रत्यक्ष कर की जाँच से जुड़ी वानचू समिति ने काला धन बाहर लाने और उसे खत्म करने के लिए विमुद्रीकरण का सुझाव दिया था। लेकिन इस सुझाव के सार्वजनिक हो जाने की वजह से कालाधन रखने वालों ने तत्काल अपने पैसे इधर-उधर निकाल दिए। 1977 में इमरजेंसी हटने के बाद चुनाव हुए और केंद्र में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी। 16 जनवरी, 1978 को मोरारजी सरकार ने एक कानून बनाकर 1000, 5000 और 10,000 के नोट बंद कर दिए। इसके बाद 8 नवम्बर, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुराने 500 और 1000 की मुद्रा बंद कर दिए और नए 500 रुपए के नोट पेश किये।

Depreciation of Indian Rupee (रुपए का अवमूल्यन)

अर्थशास्त्र में किसी मुद्रा के अवमूल्यन का मतलब होता है उसकी कीमत का किसी दूसरी मुद्रा के मुकाबले कम कर देना। इसे ऐसे समझें कि अगर रुपए का अवमूल्यन होता है, तो इसका मतलब होगा कि अब एक डॉलर खरीदने के लिए आपको ज्यादा रुपए खर्च करने पड़ेंगे; यानी रुपए की कीमत कम हो जाएगी।

किसी देश द्वारा मुद्रा की विनिमय दर अन्य देशों की मुद्राओं की तुलना में जानबूझ कर इसलिए कम की जाती है ताकि निवेश को बढ़ावा मिल सके। इससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपने देश के सामानों की कीमत दूसरे देशों के मुकाबले कम हो जाती है और निर्यात बढ़ाया जा सकता है।

रुपए का सर्वप्रथम अवमूल्यन 20 सितंबर, 1949 को हुआ, जब रुपए का 30.5 प्रतिशत अवमूल्यन कर दिया गया। उस समय के अवमूल्यन का एक ख़ास तथा महत्वपूर्ण नुकसान यह हुआ था कि भारत ने 1951 में अमेरिका से जो गेहूँ मँगाया था उसकी 30.5 प्रतिशत ज्यादा कीमत देनी पड़ी थी तथा जनता को मूल्यों से महंगाई का कष्ट उठाना पड़ा।

Second Devaluation in India (भारत में दूसरा अवमूल्यन)

भारतीय रुपए का दूसरा अवमूल्यन 6 जून, 1966 को प्रातः 2 बजे से किया गया। इस बार रुपए का 36.5 प्रतिशत अवमूल्यन किया गया। नब्बे के दशक के शुरुआती दौर में भारत के सामने भुगतान संतुलन का गंभीर संकट पैदा हो गया और 1991 में देश को विश्व की चार प्रमुख मुद्राओं (Pound Sterling, American Dollar, Japanese Yen and German Mark) की तुलना में दो बार रुपए का अवमूल्यन करना पड़ा (1 जुलाई, 1991 को रुपए का तीसरी बार 9.0 प्रतिशत अवमूल्यन किया गया था। 3 जुलाई, 1991 को रुपए का चौथी बार 11.0 प्रतिशत अवमूल्यन किया गया)। देश उस समय महंगाई, कम वृद्धि दर और विदेशी मुद्रा की कमी से जूझ रहा था। विदेशी मुद्रा तीन हफ्तों के आयात के लिए भी पर्याप्त नहीं थी। ऐसे हालात में रुपए का अवमूल्यन करके उसकी कीमत 17.9 रुपए प्रति डॉलर निर्धारित की गयी।

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